Sunday, 20 May 2018

साइबर क्राइम


भारी पड़ेगा साइबर क्राइम करना




इंटरनेट पर किए जाने वाले उन कामों की चर्चा जो साइबर क्राइम करने वालों को कानून में सजा का प्रावधान है। किस अपराध के लिए कौन-सी धारा लगती है और उसमें कितनी सजा मिल सकती है, इसी की पूरी जानकारी दे रहे हैं  आर. के . शाक्य

कंप्यूटर, इंटरनेट, डिजिटल डिवाइसेज, वर्ल्ड वाइड वेब आदि के जरिए किए जाने वाले अपराधों के लिए छोटे-मोटे जुर्माने से लेकर उम्र कैद तक की सजा दी जा सकती है। दुनिया भर में सुरक्षा और जांच एजेंसियां साइबर अपराधों को बहुत गंभीरता से ले रही हैं। ऐसे मामलों में सूचना तकनीक कानून 2000 और सूचना तकनीक (संशोधन) कानून 2008 तो लागू होते ही हैं, मामले के दूसरे पहलुओं को ध्यान में रखते हुए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), कॉपीराइट कानून 1957, कंपनी कानून, सरकारी गोपनीयता कानून और यहां तक कि बिरले मामलों में आतंकवाद निरोधक कानून भी लागू किए जा सकते हैं। कुछ मामलों पर भारत सरकार के आईटी डिपार्टमेंट की तरफ से अलग से जारी किए गए आईटी नियम 2011 भी लागू होते हैं। कानून में निर्दोष लोगों को साजिशन की गई शिकायतों से सुरक्षित रखने की भी मुनासिब व्यवस्था है, लेकिन कंप्यूटर, दूरसंचार और इंटरनेट यूजर को हमेशा सतर्क रहना चाहिए कि उनसे जाने-अनजाने में कोई साइबर क्राइम तो नहीं हो रहा है। तकनीकी जरियों का सुरक्षित इस्तेमाल करने के लिए हमेशा याद रखें कि इलाज से परहेज बेहतर है।

हैकिंग
हैकिंग का मतलब है किसी कंप्यूटर, डिवाइस, इंफॉर्मेशन सिस्टम या नेटवर्क में अनधिकृत रूप से घुसपैठ करना और डेटा से छेड़छाड़ करना। यह हैकिंग उस सिस्टम की फिजिकल एक्सेस के जरिए भी हो सकती है और रिमोट एक्सेस के जरिए भी। जरूरी नहीं कि ऐसी हैकिंग के नतीजे में उस सिस्टम को नुकसान पहुंचा ही हो। अगर कोई नुकसान नहीं भी हुआ है, तो भी घुसपैठ करना साइबर क्राइम के तहत आता है, जिसके लिए सजा का प्रावधान है।

कानून
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आईटी (संशोधन) एक्ट 2008 की धारा 43 (ए), धारा 66
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आईपीसी की धारा 379 और 406 के तहत कार्रवाई मुमकिन
सजा: अपराध साबित होने पर तीन साल तक की जेल और/या पांच लाख रुपये तक जुर्माना।

डेटा की चोरी
किसी और व्यक्ति, संगठन वगैरह के किसी भी तकनीकी सिस्टम से निजी या गोपनीय डेटा (सूचनाओं) की चोरी। अगर किसी संगठन के अंदरूनी डेटा तक आपकी आधिकारिक पहुंच है, लेकिन अपनी जायज पहुंच का इस्तेमाल आप उस संगठन की इजाजत के बिना, उसके नाजायज दुरुपयोग की मंशा से करते हैं, तो वह भी इसके दायरे में आएगा। कॉल सेंटरों, दूसरों की जानकारी रखने वाले संगठनों आदि में भी लोगों के निजी डेटा की चोरी के मामले सामने आते रहे हैं।

कानून
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आईटी (संशोधन) कानून 2008 की धारा 43 (बी), धारा 66 (ई), 67 (सी)
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आईपीसी की धारा 379, 405, 420
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कॉपीराइट कानून
सजा: अपराध की गंभीरता के हिसाब से तीन साल तक की जेल और/या दो लाख रुपये तक जुर्माना।

वायरस-स्पाईवेयर फैलाना
कंप्यूटर में आए वायरस और स्पाईवेयर के सफाए पर लोग ध्यान नहीं देते। उनके कंप्यूटर से होते हुए ये वायरस दूसरों तक पहुंच जाते हैं। हैकिंग, डाउनलोड, कंपनियों के अंदरूनी नेटवर्क, वाई-फाई कनेक्शनों और असुरक्षित फ्लैश ड्राइव, सीडी के जरिए भी वायरस फैलते हैं। वायरस बनाने वाले अपराधियों की पूरी इंडस्ट्री है जिनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होती है। वैसे, आम लोग भी कानून के दायरे में आ सकते हैं, अगर उनकी लापरवाही से किसी के सिस्टम में खतरनाक वायरस पहुंच जाए और बड़ा नुकसान कर दे।

कानून
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आईटी (संशोधन) एक्ट 2008 की धारा 43 (सी), धारा 66
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आईपीसी की धारा 268
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देश की सुरक्षा को खतरा पहुंचाने के लिए फैलाए गए वायरसों पर साइबर आतंकवाद से जुड़ी धारा 66 (एफ) भी लागू (गैर-जमानती)।
सजा : साइबर-वॉर और साइबर आतंकवाद से जुड़े मामलों में उम्र कैद। दूसरे मामलों में तीन साल तक की जेल और/या जुर्माना।

पहचान की चोरी
किसी दूसरे शख्स की पहचान से जुड़े डेटा, गुप्त सूचनाओं वगैरह का इस्तेमाल करना। मिसाल के तौर पर कुछ लोग दूसरों के क्रेडिट कार्ड नंबर, पासपोर्ट नंबर, आधार नंबर, डिजिटल आईडी कार्ड, ई-कॉमर्स ट्रांजैक्शन पासवर्ड, इलेक्ट्रॉनिक सिग्नेचर वगैरह का इस्तेमाल करते हुए शॉपिंग, धन की निकासी वगैरह कर लेते हैं। जब आप कोई और शख्स होने का आभास देते हुए कोई अपराध करते हैं या बेजा फायदा उठाते हैं, तो वह आइडेंटिटी थेफ्ट (पहचान की चोरी) के दायरे में आता है।

कानून
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आईटी (संशोधन) एक्ट 2008 की धारा 43, 66 (सी)
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आईपीसी की धारा 419 का इस्तेमाल मुमकिन
सजा: तीन साल तक की जेल और/या एक लाख रुपये तक जुर्माना।

ई-मेल स्पूफिंग और फ्रॉड
किसी दूसरे शख्स के ई-मेल पते का इस्तेमाल करते हुए गलत मकसद से दूसरों को ई-मेल भेजना इसके तहत आता है। हैकिंग, फिशिंग, स्पैम और वायरस-स्पाईवेयर फैलाने के लिए इस तरह के फ्रॉड का इस्तेमाल ज्यादा होता है। इनका मकसद ई-मेल पाने वाले को धोखा देकर उसकी गोपनीय जानकारियां हासिल कर लेना होता है। ऐसी जानकारियों में बैंक खाता नंबर, क्रेडिट कार्ड नंबर, ई-कॉमर्स साइट का पासवर्ड वगैरह आ सकते हैं।

कानून
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आईटी कानून 2000 की धारा 77 बी
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आईटी (संशोधन) कानून 2008 की धारा 66 डी
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आईपीसी की धारा 417, 419, 420 और 465
सजा: तीन साल तक की जेल और/या जुर्माना।

पोर्नोग्राफी
पोर्नोग्राफी के दायरे में ऐसे फोटो, विडियो, टेक्स्ट, ऑडियो और सामग्री आती है, जिसकी प्रकृति यौन हो और जो यौन कृत्यों और नग्नता पर आधारित हो। ऐसी सामग्री को इलेक्ट्रॉनिक ढंग से प्रकाशित करने, किसी को भेजने या किसी और के जरिS प्रकाशित करवाने या भिजवाने पर पोर्नोग्राफी निरोधक कानून लागू होता है। जो लोग दूसरों के नग्न या अश्लील विडियो तैयार कर लेते हैं या एमएमएस बना लेते हैं और इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से दूसरों तक पहुंचाते हैं, किसी को उसकी मर्जी के खिलाफ अश्लील संदेश भेजते हैं, वे भी इसके दायरे में आते हैं।
अपवाद: पोर्नोग्राफी प्रकाशित करना और इलेक्ट्रॉनिक जरियों से दूसरों तक पहुंचाना अवैध है, लेकिन उसे देखना, पढ़ना या सुनना अवैध नहीं है, लेकिन चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना भी अवैध है। कला, साहित्य, शिक्षा, विज्ञान, धर्म आदि से जुड़े कामों के लिए जनहित में तैयार की गई उचित सामग्री अवैध नहीं मानी जाती।

कानून
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आईटी (संशोधन) कानून 2008 की धारा 67 (ए)
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आईपीसी की धारा 292, 293, 294, 500, 506 और 509
सजा: जुर्म की गंभीरता के लिहाज से पहली गलती पर पांच साल तक की जेल और/या दस लाख रुपये तक जुर्माना। दूसरी बार गलती करने पर जेल की सजा सात साल हो जाती है।

चाइल्ड पोर्नोग्राफी
ऐसे मामलों में कानून और भी ज्यादा कड़ा है। बच्चों को सेक्सुअल एक्ट में या नग्न दिखाते हुए इलेक्ट्रॉनिक फॉर्मैट में कोई चीज प्रकाशित करना या दूसरों को भेजना। इससे भी आगे बढ़कर कानून कहता है कि जो लोग बच्चों से जुड़ी अश्लील सामग्री तैयार करते हैं, इकट्ठी करते हैं, ढूंढते हैं, देखते हैं, डाउनलोड करते हैं, विज्ञापन देते हैं, प्रमोट करते हैं, दूसरों के साथ लेनदेन करते हैं या बांटते हैं तो वह भी गैरकानूनी है। बच्चों को बहला-फुसलाकर ऑनलाइन संबंधों के लिए तैयार करना, फिर उनके साथ यौन संबंध बनाना या बच्चों से जुड़ी यौन गतिविधियों को रेकॉर्ड करना, एमएमएस बनाना, दूसरों को भेजना आदि भी इसके तहत आते हैं। यहां बच्चों से मतलब है - 18 साल से कम उम्र के लोग।

कानून
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आईटी (संशोधन) कानून 2009 की धारा 67 (बी), आईपीसी की धाराएं 292, 293, 294, 500, 506 और 509
सजा: पहले अपराध पर पांच साल की जेल और/या दस लाख रुपये तक जुर्माना। दूसरे अपराध पर सात साल तक की जेल और/या दस लाख रुपये तक जुर्माना।

तंग करना
सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों, ई-मेल, चैट वगैरह के जरिए बच्चों या महिलाओं को तंग करने के मामले जब-तब सामने आते रहते हैं। डिजिटल जरिए से किसी को अश्लील या धमकाने वाले संदेश भेजना या किसी भी रूप में परेशान करना साइबर क्राइम के दायरे में आता है। किसी के खिलाफ दुर्भावना से अफवाहें फैलाना (जैसा कि पूर्वोत्तर के लोगों के मामले में हुआ), नफरत फैलाना या बदनाम करना।

कानून
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आईटी (संशोधन) कानून 2009 की धारा 66 (ए)
सजा: तीन साल तक की जेल और/या जुर्माना


आईपीआर (बौद्धिक संपदा) उल्लंघन
वेब पर मौजूद दूसरों की सामग्री को चुराकर अनधिकृत रूप से इस्तेमाल करने और प्रकाशित करने के मामलों पर भारतीय साइबर कानूनों में अलग से प्रावधान नहीं हैं, लेकिन पारंपरिक कानूनों के तहत कार्रवाई की मुनासिब व्यवस्था है। किताबें, लेख, विडियो, चित्र, ऑडियो, लोगो और दूसरे क्रिएटिव मटीरियल को बिना इजाजत इस्तेमाल करना अनैतिक तो है ही, अवैध भी है। साथ ही सॉफ्टवेयर की पाइरेसी, ट्रेडमार्क का उल्लंघन, कंप्यूटर सोर्स कोड की चोरी और पेटेंट का उल्लंघन भी इस जुर्म के दायरे में आता है।

कानून
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कॉपीराइट कानून 1957 की धारा 14, 63 बी
सजा: सात दिन से तीन साल तक की जेल और/या 50 हजार रुपये से दो लाख रुपये तक का जुर्माना। 


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